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ख़ून-ए-नाहक़ थी फ़क़त दुनिया-ए-आब-ओ-गिल की बात - एजाज़ वारसी कविता - Darsaal

ख़ून-ए-नाहक़ थी फ़क़त दुनिया-ए-आब-ओ-गिल की बात

ख़ून-ए-नाहक़ थी फ़क़त दुनिया-ए-आब-ओ-गिल की बात

ये है महशर क्यूँ यहाँ हो दामन-ए-क़ातिल की बात

आज क्यूँ अश्कों में है अक्स-ए-तबस्सुम जल्वा-गर

आ गई क्या अपनी हद पर ग़म के मुस्तक़बिल की बात

हर नज़र रंगीनी-ए-रुख़ तक पहुँच कर रह गई

फूल अब किस से कहें गुलशन में ज़ख़्म-ए-दिल की बात

देखते ही रह गए क़ानून-ए-क़ुदरत अहल-ए-ज़ब्त

ले उड़ी ख़ाकिस्तर-ए-परवाना जब महफ़िल की बात

नाख़ुदा हम और तूफ़ाँ से करें फ़िक्र-ए-फ़रार

हम कभी करते नहीं साहिल पे भी साहिल की बात

हो न जाए फिर शुऊ'र-ए-कारवाँ नज़्र-ए-फ़रेब

छेड़ दी है राहबर ने आज फिर मंज़िल की बात

कोई अपना है न कोई हमदम-ओ-दर्द-आश्ना

ऐ ख़ुदा किस से कहे 'एजाज़' अपने दिल की बात

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