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हँसी लबों पे सजाए उदास रहता है - एजाज़ रहमानी कविता - Darsaal

हँसी लबों पे सजाए उदास रहता है

हँसी लबों पे सजाए उदास रहता है

ये कौन है जो मिरे घर के पास रहता है

ये और बात कि मिलता नहीं कोई उस से

मगर वो शख़्स सरापा सिपास रहता है

जहाँ पे डूब गया मेरी आस का सूरज

उसी जगह वो सितारा-शनास रहता है

गुज़र रहा हूँ मैं सौदा-गरों की बस्ती से

बदन पे देखिए कब तक लिबास रहता है

लिखी है किस ने ये तहरीर रेग-ए-साहिल पर

बहुत दिनों से समुंदर उदास रहता है

मैं वहशतों के सफ़र में भी हूँ कहाँ तन्हा

यही गुमाँ है कोई आस-पास रहता है

मैं गुफ़्तुगू के हर अंदाज़ को समझता हूँ

कि मेरी ज़ात में लहजा-शनास रहता है

वो फ़ासलों में भी रखता है रंग क़ुर्बत के

नज़र से दूर सही दिल के पास रहता है

जब उन से गुफ़्तुगू करता है कोई भी 'एजाज़'

इक इल्तिमास पस-ए-इल्तिमास रहता है

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