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अब कर्ब के तूफ़ाँ से गुज़रना ही पड़ेगा - एजाज़ रहमानी कविता - Darsaal

अब कर्ब के तूफ़ाँ से गुज़रना ही पड़ेगा

अब कर्ब के तूफ़ाँ से गुज़रना ही पड़ेगा

सूरज को समुंदर में उतरना ही पड़ेगा

फ़ितरत के तक़ाज़े कभी बदले नहीं जाते

ख़ुश्बू है अगर वो तो बिखरना ही पड़ेगा

पड़ती है तो पड़ जाए शिकन उस की जबीं पर

सच्चाई का इज़हार तो करना ही पड़ेगा

हर शख़्स को आएँगे नज़र रंग सहर के

ख़ुर्शीद की किरनों को बिखरना ही पड़ेगा

मैं सोच रहा हूँ ये सर-ए-शहर-ए-निगाराँ

ये उस की गली है तो ठहरना ही पड़ेगा

अब शाना-ए-तदबीर है हाथों में हमारे

हालात की ज़ुल्फ़ों को सँवरना ही पड़ेगा

इक उम्र से बे-नूर है ये महफ़िल-ए-हस्ती

'एजाज़' कोई रंग तो भरना ही पड़ेगा

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