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तेरे दामन की थी या मस्त हुआ किस की थी - एजाज़ उबैद कविता - Darsaal

तेरे दामन की थी या मस्त हुआ किस की थी

तेरे दामन की थी या मस्त हुआ किस की थी

साथ मेरे चली आई वो सदा किस की थी

कौन मुजरिम है कि दूरी है वही पहली सी

पास आ कर चले जाने की अदा किस की थी

दिल तो सुलगा था मगर आँखों में आँसू क्यूँ आए

मिल गई किस को सज़ा और ख़ता किस की थी

शाम आते ही उतर आए मिरे गाँव में रंग

जिस के ये रंग थे जाने वो क़बा किस की थी

ये मिरा दिल है कि आँखें कि सितारों की तरह

जलने बुझने की सहर तक ये अदा किस की थी

चाँदनी रात घने नीम तले कोई न था

फिर फ़ज़ाओं में वो ख़ुशबू-ए-हिना किस की थी

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