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मैं ने क्या काम ला-जवाब किया - एजाज़ उबैद कविता - Darsaal

मैं ने क्या काम ला-जवाब किया

मैं ने क्या काम ला-जवाब किया

उस को आलम में इंतिख़ाब किया

करम उस के सितम से बढ़ कर थे

आज जब बैठ कर हिसाब किया

कैसे मोती छुपाए आँखों में

हाए किस फ़न का इकतिसाब किया

कैसी मजबूरियाँ नसीब में थीं

ज़िंदगी की कि इक अज़ाब किया

साथ जब गर्द-ए-कू-ए-यार रही

हर सफ़र हम ने कामयाब किया

कुछ हमारे लिखे गए क़िस्से

बारे कुछ दाख़िल निसाब किया

क्या 'उबैद' अब उसे मैं दूँ इल्ज़ाम

अपना ख़ाना तो ख़ुद ख़राब किया

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