Sad Poetry of Ejaz Gul
नाम | एजाज़ गुल |
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अंग्रेज़ी नाम | Ejaz Gul |
सुस्त-रौ मुसाफ़िर की क़िस्मतों पे क्या रोना
कोई सबब तो है ऐसा कि एक उम्र से हैं
कभी क़तार से बाहर कभी क़तार के बीच
होता है फिर वो और किसी याद के सुपुर्द
अजीब शख़्स था मैं भी भुला नहीं पाया
ज़रा बतला ज़माँ क्या है मकाँ के उस तरफ़ क्या है
ये घूमता हुआ आईना अपना ठहरा के
थम गई वक़्त की रफ़्तार तिरे कूचे में
सूरत-ए-सहर जाऊँ और दर-ब-दर जाऊँ
रह रहे हैं मकीं शबों के
क़ाफ़िला उतरा सहरा में और पेश वही मंज़र आए
पेचाक-ए-उम्र अपने सँवार आइने के साथ
नहीं शौक़-ए-ख़रीदारी में दौड़े जा रहा है
मंज़र-ए-वक़्त की यकसानी में बैठा हुआ हूँ
महमिल है मतलूब न लैला माँगता है
ख़ाशाक से ख़िज़ाँ में रहा नाम बाग़ का
कभी क़तार से बाहर कभी क़तार के बीच
इतना तिलिस्म याद के चक़माक़ में रहा
गली से अपनी उठाता है वो बहाने से
ढूँढता हूँ रोज़-ओ-शब कौन से जहाँ में है
ढूँढता हूँ रोज़-ओ-शब कौन से जहाँ में है
दर खोल के देखूँ ज़रा इदराक से बाहर
चल रहा हूँ पेश-ओ-पस-मंज़र से उकताया हुआ
अक्स उभरा न था आईना-ए-दिल-दारी का