Love Poetry of Ejaz Gul
नाम | एजाज़ गुल |
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अंग्रेज़ी नाम | Ejaz Gul |
पाया न कुछ ख़ला के सिवा अक्स-ए-हैरती
दिनों महीनों आँखें रोईं नई रुतों की ख़्वाहिश में
धूप जवानी का याराना अपनी जगह
निशान-ए-ज़िंदगी
उसी जन्नत जहन्नम में मरूँगा
थम गई वक़्त की रफ़्तार तिरे कूचे में
सूरत-ए-सहर जाऊँ और दर-ब-दर जाऊँ
क़ाफ़िला उतरा सहरा में और पेश वही मंज़र आए
फैला अजब ग़ुबार है आईना-गाह में
पेचाक-ए-उम्र अपने सँवार आइने के साथ
नहीं शौक़-ए-ख़रीदारी में दौड़े जा रहा है
महमिल है मतलूब न लैला माँगता है
कभी क़तार से बाहर कभी क़तार के बीच
जो क़िस्सा-गो ने सुनाया वही सुना गया है
इस्तादा है जब सामने दीवार कहूँ क्या
हम तुम जब भी प्यार करेंगे जान-ओ-दिल सदक़े होंगे
गलियों में भटकना रह-ए-आलाम में रहना
ढूँढता हूँ रोज़-ओ-शब कौन से जहाँ में है
ढूँढता हूँ रोज़-ओ-शब कौन से जहाँ में है
दर खोल के देखूँ ज़रा इदराक से बाहर
अक्स उभरा न था आईना-ए-दिल-दारी का