Hope Poetry of Ejaz Gul
नाम | एजाज़ गुल |
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अंग्रेज़ी नाम | Ejaz Gul |
दिनों महीनों आँखें रोईं नई रुतों की ख़्वाहिश में
दुश्मनों के दरमियान सुल्ह
यहीं था बैठा हुआ दरमियाँ कहाँ गया मैं
क़ाफ़िला उतरा सहरा में और पेश वही मंज़र आए
फैला अजब ग़ुबार है आईना-गाह में
पेचाक-ए-उम्र अपने सँवार आइने के साथ
मंज़र-ए-वक़्त की यकसानी में बैठा हुआ हूँ
महमिल है मतलूब न लैला माँगता है
किसे ख़याल था ऐसी भी साअ'तें होंगी
ख़ाशाक से ख़िज़ाँ में रहा नाम बाग़ का
जो क़िस्सा-गो ने सुनाया वही सुना गया है
इतना तिलिस्म याद के चक़माक़ में रहा
इस्तादा है जब सामने दीवार कहूँ क्या
गलियों में भटकना रह-ए-आलाम में रहना
दर खोल के देखूँ ज़रा इदराक से बाहर
चल रहा हूँ पेश-ओ-पस-मंज़र से उकताया हुआ