उसी जन्नत जहन्नम में मरूँगा
उसी जन्नत जहन्नम में मरूँगा
गए मौसम को आवाज़ें न दूँगा
नए जिस्मों से मक़्तल जागते हैं
नए लोगों के रस्ते पर चलूँगा
मिरी आँखें सलामत हैं तो फिर मैं
पराए ख़्वाब ले कर क्या करूँगा
लहू की सुर्ख़ियाँ मेरे अलम हैं
ख़िज़ाँ के ज़र्द लश्कर से लड़ूँगा
किसी ख़ित्ते में क़त्ल-ए-रौशनी हो
मैं अपने शहर पर नौहा कहूँगा
और उस पर जो सितम टूटेगा उस को
तुम्हारे नाम लिक्खूंगा सहूँगा
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