सूरत-ए-सहर जाऊँ और दर-ब-दर जाऊँ
सूरत-ए-सहर जाऊँ और दर-ब-दर जाऊँ
अब तो फ़ैसला ठहरा रात से गुज़र जाऊँ
वाहिमों के ज़िंदाँ का ज़ेहन ज़ेहन क़ैदी है
बोल फ़िक्र-ए-ताबिंदा मैं किधर किधर जाऊँ
मेरी ना-रसाई से क़ाफ़िला न रुक जाए
मैं कि पा-शिकस्ता हूँ रास्ते में मर जाऊँ
इश्क़ की सदाक़त पर जबकि मेरा ईमाँ है
कैसे ख़ुद-कुशी कर लूँ क्यूँ बिखर बिखर जाऊँ
(749) Peoples Rate This