Heart Broken Poetry of Ejaz Gul (page 1)
नाम | एजाज़ गुल |
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अंग्रेज़ी नाम | Ejaz Gul |
उठा रखी है किसी ने कमान सूरज की
सुस्त-रौ मुसाफ़िर की क़िस्मतों पे क्या रोना
नहीं खुलता कि आख़िर ये तिलिस्माती तमाशा सा
कुछ देर ठहर और ज़रा देख तमाशा
कभी क़तार से बाहर कभी क़तार के बीच
होता है फिर वो और किसी याद के सुपुर्द
हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई था अगर
धूप जवानी का याराना अपनी जगह
बे-सबब जम'अ तो करता नहीं तीर ओ तरकश
अजीब शख़्स था मैं भी भुला नहीं पाया
निशान-ए-ज़िंदगी
दुश्मनों के दरमियान सुल्ह
ज़रा बतला ज़माँ क्या है मकाँ के उस तरफ़ क्या है
ये घूमता हुआ आईना अपना ठहरा के
उसी जन्नत जहन्नम में मरूँगा
थम गई वक़्त की रफ़्तार तिरे कूचे में
सूरत-ए-सहर जाऊँ और दर-ब-दर जाऊँ
क़ाफ़िला उतरा सहरा में और पेश वही मंज़र आए
फैला अजब ग़ुबार है आईना-गाह में
पेश-तर जुम्बिश-ए-लब बात से पहले क्या था
पेचाक-ए-उम्र अपने सँवार आइने के साथ
नहीं शौक़-ए-ख़रीदारी में दौड़े जा रहा है
मंज़र-ए-वक़्त की यकसानी में बैठा हुआ हूँ
महमिल है मतलूब न लैला माँगता है
किसे ख़याल था ऐसी भी साअ'तें होंगी
ख़ाशाक से ख़िज़ाँ में रहा नाम बाग़ का
कभी क़तार से बाहर कभी क़तार के बीच
इतना तिलिस्म याद के चक़माक़ में रहा
गलियों में भटकना रह-ए-आलाम में रहना
गली से अपनी उठाता है वो बहाने से