Ghazals of Ejaz Gul
नाम | एजाज़ गुल |
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अंग्रेज़ी नाम | Ejaz Gul |
ज़रा बतला ज़माँ क्या है मकाँ के उस तरफ़ क्या है
ये घूमता हुआ आईना अपना ठहरा के
यहीं था बैठा हुआ दरमियाँ कहाँ गया मैं
उसी जन्नत जहन्नम में मरूँगा
थम गई वक़्त की रफ़्तार तिरे कूचे में
सूरत-ए-सहर जाऊँ और दर-ब-दर जाऊँ
रह रहे हैं मकीं शबों के
क़ाफ़िला उतरा सहरा में और पेश वही मंज़र आए
फैला अजब ग़ुबार है आईना-गाह में
पेश-तर जुम्बिश-ए-लब बात से पहले क्या था
पेचाक-ए-उम्र अपने सँवार आइने के साथ
नहीं शौक़-ए-ख़रीदारी में दौड़े जा रहा है
मंज़र-ए-वक़्त की यकसानी में बैठा हुआ हूँ
महमिल है मतलूब न लैला माँगता है
किसे ख़याल था ऐसी भी साअ'तें होंगी
ख़ाशाक से ख़िज़ाँ में रहा नाम बाग़ का
कभी क़तार से बाहर कभी क़तार के बीच
जो क़िस्सा-गो ने सुनाया वही सुना गया है
इतना तिलिस्म याद के चक़माक़ में रहा
इस्तादा है जब सामने दीवार कहूँ क्या
हम तुम जब भी प्यार करेंगे जान-ओ-दिल सदक़े होंगे
गलियों में भटकना रह-ए-आलाम में रहना
गली से अपनी उठाता है वो बहाने से
दुश्वार है अब रास्ता आसान से आगे
ढूँढता हूँ रोज़-ओ-शब कौन से जहाँ में है
ढूँढता हूँ रोज़-ओ-शब कौन से जहाँ में है
दर खोल के देखूँ ज़रा इदराक से बाहर
चल रहा हूँ पेश-ओ-पस-मंज़र से उकताया हुआ
अक्स उभरा न था आईना-ए-दिल-दारी का