मुहाजिर

यहाँ

कभी कभी धूप भी

ज़ीना ज़ीना यूँ उतरी है

जैसे अजनबी हो

और मुझे वो लोग याद आए हैं

जो अपने वतन से बिछड़ गए

मुहाजिर जिला-वतन

जिन्हों ने समझा था कि अजनबी शहर में मौत

कम लोगों को आती है

जो यहाँ इस गुमान में आए थे

कि आफ़ियत दाइम रहेगी

तुम ने ढलते सायों की सियासत से गुरेज़ किया है

तुम धूप से डरे हो

तुम ने आँख यूँ बंद कर ली है जैसे पक्की ईंट है

मेरे तुम्हारे दरमियान अब रोज़-मर्रा

हमदर्दियों के लफ़्ज़ भी नहीं

(1228) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Muhajir In Hindi By Famous Poet Ejaaz Ahamd Ejaaz. Muhajir is written by Ejaaz Ahamd Ejaaz. Complete Poem Muhajir in Hindi by Ejaaz Ahamd Ejaaz. Download free Muhajir Poem for Youth in PDF. Muhajir is a Poem on Inspiration for young students. Share Muhajir with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.