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चाँद - एजाज़ अहमद एजाज़ कविता - Darsaal

चाँद

चाँद

क़रीब आओ बैठो मेरे पास

मेरे चुप दोस्त

मुझे दो

चीते का नुक़रई दाग़दार बदन

बर्फ़ीली रात में दबा हुआ

जो तुम्हारी गोद में है

मुझे सिखाओ दो लफ़्ज़

हसपानवी चीनी पुर्तगाली

इख़्लास के वो सब्ज़ लफ़्ज़

जो तुम ने सुने हैं

अपनी चाँदनी में ख़ौफ़-पा गुज़रे हुओं की

अमानत की तरह

जज़्ब कर लिए हैं

मुझे दो

औरतों और नज़्मों के बदन

कि जवान होते ढलते रहे हैं

तुम्हारे चर्ख़े के सूत की तरह जो तुम

मेरे और मेरी दुनिया के बचपन से

आज तलक

कातते रहे हो

आइंदा भी कातोगे

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