सदाक़तों के पयम्बर गए रसूल गए
सदाक़तों के पयम्बर गए रसूल गए
ख़ुदी की हुर्मत-ए-अफ़ज़ल गई उसूल गए
जो बुल-हवस थे सर-ए-आम दनदनाते रहे
जो हक़-परस्त थे सब फाँसीयों पे झूल गए
गिला फ़क़त है ये ज़ाहिद की पारसाई से
ज़रा सा वक़्त पड़ा उन के सब उसूल गए
ख़िज़र से हम भी मिला कर क़दम चले थे मगर
मसाफ़तों की तवालत से साँस फूल गए
तुम्हारे जाने से हर इक कली का रंग उड़ा
चमन से फ़स्ल-ए-बहाराँ गई तो फूल गए
रह-ए-हयात में लाखों थे हम-सफ़र 'एजाज़'
किसी को याद रखा और किसी को भूल गए
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