क्यूँ हर तरफ़ तू ख़्वार हुआ एहतिसाब कर
क्यूँ हर तरफ़ तू ख़्वार हुआ एहतिसाब कर
नाराज़ क्यूँ है तुझ से ख़ुदा एहतिसाब कर
हासिल तो हो गईं तुझे सारी सहूलतें
रिज़्क़-ए-हलाल कितना मिला एहतिसाब कर
हर दिन कुरेदता है तू अपने ही ज़ख़्म को
क्या है यही मरज़ की दवा एहतिसाब कर
कब तक रहेगा रौशनी के इंतिज़ार में
जलता नहीं है ख़ुद से दिया एहतिसाब कर
गुमनाम हो गया है तू अपनी ही बज़्म में
किन ग़लतियों की है ये सज़ा एहतिसाब कर
अपने किए-धरे का अब 'अहया' हिसाब कर
दुनिया मिली कि दीन मिला एहतिसाब कर
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