जब कभी दर्द की तस्वीर बनाने निकले
जब कभी दर्द की तस्वीर बनाने निकले
ज़ख़्म की तह में कई ज़ख़्म पुराने निकले
चैन मिलता है तिरे शौक़ को पूरा कर के
वर्ना ऐ लख़्त-ए-जिगर कौन कमाने निकले
वक़्त की गर्द में पैवस्त थे सब ज़ख़्म मिरे
जब चली तेज़ हवा लाख फ़साने निकले
ये किसी तौर भी अल्लाह को मंज़ूर नहीं
कि तू एहसान करे और जताने निकले
पहले नफ़रत की वो दीवार गिराए 'अहया'
फिर मोहब्बत का नया शहर बसाने निकले
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