ये दुनिया है यहाँ असली कहानी पुश्त पर रखना
लबों पर प्यास रखना और पानी पुश्त पर रखना
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हुसूल-ए-मक़्सद में आख़िरश यूँ रहेगी क़िस्मत दख़ील कब तक
तू मर्द-ए-मोमिन है अपनी मंज़िल को आसमानों पे देख नादाँ
शुऊर-ए-नौ-उम्र हूँ न मुझ को मता-ए-रंज-ओ-मलाल देना
तिरे बदन की नज़ाकतों का हुआ है जब हम-रिकाब मौसम
मैं इक मज़दूर हूँ रोटी की ख़ातिर बोझ उठाता हूँ