तू मर्द-ए-मोमिन है अपनी मंज़िल को आसमानों पे देख नादाँ
तू मर्द-ए-मोमिन है अपनी मंज़िल को आसमानों पे देख नादाँ
कि राह-ए-ज़ुल्मत में साथ देगा कोई चराग़-ए-अलील कब तक
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तू मर्द-ए-मोमिन है अपनी मंज़िल को आसमानों पे देख नादाँ
कि राह-ए-ज़ुल्मत में साथ देगा कोई चराग़-ए-अलील कब तक
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