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छोटे क़द के लोग - एहतिशाम अख्तर कविता - Darsaal

छोटे क़द के लोग

बुलंद बाँग दा'वों की

आवाज़ें

खोटे सिक्कों की तरह

बजती हैं

फिर भी छोटे क़द के लोग

इन क़द-आवर आवाज़ों को

सुनते रहते हैं

काग़ज़ के टुकड़ों की

अब कोई क़ीमत न रही

फिर भी भूकी आँखें

उन्हें ढूँढती हैं

और नाकाम रहती हैं

और बे-रहम हाथ

उन्हें जम्अ' करते रहते हैं

छोटे क़द के लोग

अपनी आवाज़ खो चुके हैं

वो सिर्फ़ देख सकते हैं

और सुन सकते हैं

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