सुर्ख़ मौसम की कहानी है पुरानी हो न हो
सुर्ख़ मौसम की कहानी है पुरानी हो न हो
आसमाँ का रंग आगे आसमानी हो न हो
ख़्वाब में मुझ को नज़र आती हैं भीगी सीपियाँ
आँख खुलने पर तिरी आँखों में पानी हो न हो
साथ होती है मिरे हर गाम पर संजीदगी
हो रही है दूर अब मुझ से जवानी हो न हो
हर जगह निकलेगी तेरी बात मुझ को देख कर
तज़्किरा तेरा कहीं मेरी ज़बानी हो न हो
रौशनी देते रहेंगे मुझ को ज़ख़्मों के चराग़
अब अँधेरे में कहीं से ज़ौ-फ़िशानी हो न हो
इक तरफ़ मेरी अना है इक तरफ़ तेरी ख़ुशी
आ गया मेरे लिए पल इम्तिहानी हो न हो
ज़हर का पानी में होना तय-शुदा है 'एहतिराम'
आगही के घाट पर दरिया में पानी हो न हो
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