मुंतशिर हर शय क़रीने से सजा दी जाएगी
मुंतशिर हर शय क़रीने से सजा दी जाएगी
या मिरे कमरे की शख़्सिय्यत मिटा दी जाएगी
साथ रखिए काम आएगा बहुत नाम-ए-ख़ुदा
ख़ौफ़ गर जागा तो फिर किस को सदा दी जाएगी
आग भड़केगी हवा पा कर बड़ा सच ये नहीं
सच बड़ा ये है कि शोलों को हवा दी जाएगी
बे-ठिकाना यूँ किया जाएगा इक जलता चराग़
ताक़चे में मोम की गुड़िया बिठा दी जाएगी
आइना हालात का आएगा जो भी देखने
कोई उम्दा सी ग़ज़ल उस को सुना दी जाएगी
बोलने पर कोई पाबंदी नहीं कुछ बोलिए
हाँ मगर आवाज़ उट्ठेगी दबा दी जाएगी
सर-ब-कफ़ हो जाएँगे पीर-ओ-जवाँ सब देखना
देश की ख़ातिर मता-ए-जाँ लुटा दी जाएगी
ग़ैर-मुमकिन कुछ नहीं दुनिया में लेकिन 'एहतिराम'
आप की सोहबत भला कैसे भुला दी जाएगी
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