बज़्म-ए-तन्हाई में अक्स-ए-शो'ला-पैकर था कोई
बज़्म-ए-तन्हाई में अक्स-ए-शो'ला-पैकर था कोई
या हमारे सामने यादों का लश्कर था कोई
क़ुर्बतों के घाट पर सूखी नदी साबित हुआ
फ़ासलों के दश्त में गहरा समुंदर था कोई
उस की सारी इल्तिजाएँ हुक्म ठहराई गईं
जिस घड़ी देखा गया जामे से बाहर था कोई
देवता है अब वही मंदिर के आसन पर जमा
ठोकरें खाता हुआ रस्ते का पत्थर था कोई
उस की ख़्वाहिश थी कि सत्ह-ए-आब पर चल कर दिखाए
क्या मुक़द्दर था कि दरिया का मुक़द्दर था कोई
कर्ब अपने बौने-पन का झेलता हूँ आज तक
सोच उभरी थी बुझी मेरे बराबर था कोई
सामने उस के अगर सूरज नहीं था 'एहतिराम'
पानी पानी आख़िरश क्यूँ शो'ला-पैकर था कोई
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