जज़्बात की शिद्दत से निखरता है बयाँ और
जज़्बात की शिद्दत से निखरता है बयाँ और
ग़ैरों से मोहब्बत में सँवरती है ज़बाँ और
एहसास की पलकों में तिरी याद का परतव
ग़मगीन बना देता है महफ़िल का समाँ और
गुज़रे हुए हालात से बनती है कहानी
गिरते हुए तारों से मुनव्वर है मकाँ और
मुझ को न बता ज़ीस्त के इम्कान बहुत हैं
मिट्टी में नमी हो तो उभरते हैं निशाँ और
आँगन ही में ख़ुशबू को मुक़य्यद न करो तुम
परवाज़ से मिल जाएँगे इंसाँ को जहाँ और
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