रो रहा था गोद में अम्माँ की इक तिफ़्ल-ए-हसीं
इस तरह पलकों पे आँसू हो रहे थे बे-क़रार
जैसे दीवाली की शब हल्की हवा के सामने
गाँव की नीची मुंडेरों पर चराग़ों की क़तार
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शाम और रस्ते में रेवड़ के गुज़रने से ग़ुबार
पढ़ रही हैं रात की ख़ामोशियाँ अफ़्सून-ए-ख़्वाब
हौज़ में गिर पड़ा गुलाब का फूल
रात है बरसात है मस्जिद में रौशन है चराग़
सुनता हूँ सुरंगों थे फ़रिश्ते मिरे हुज़ूर
दिल की शगुफ़्तगी के साथ राहत-ए-मय-कदा गई
मरने वाले फ़ना भी पर्दा है
शोरिश-ए-इश्क़ में है हुस्न बराबर का शरीक
किसे ख़बर थी कि ये दौर-ए-ख़ुद-ग़रज़ इक दिन
वफ़ाएँ कर के जफ़ाओं का ग़म उठाए जा
दिल की रग़बत है जब आप ही की तरफ़
यूँ उस पे मिरी अर्ज़-ए-तमन्ना का असर था