रात है बरसात है मस्जिद में रौशन है चराग़
पड़ रही है रौशनी भीगी हुई दीवार पर
जैसे इक बेवा के आँसू डूबते सूरज के वक़्त
थम गए हों बहते बहते चम्पई रुख़्सार पर
Rahat Indori
Gulzar
Allama Iqbal
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Habib Jalib
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
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शाम और रस्ते में रेवड़ के गुज़रने से ग़ुबार
मैं जिस रफ़्तार से तूफ़ाँ की जानिब बढ़ता जाता हूँ
जब किसी की याद आ कर तिलमिला जाता है दिल
मेंह बरस कर थम गया है फट गए अब्र-ए-सियाह
दोपहर होने को है सन्ना गया जंगल तमाम
'एहसान' अपना कोई बुरे वक़्त का नहीं
हुस्न को दुनिया की आँखों से न देख
मक़्सद-ए-ज़ीस्त ग़म-ए-इश्क़ है सहरा हो कि शहर
ये उजालों के जज़ीरे ये सराबों के दयार
कुछ लोग जो सवार हैं काग़ज़ की नाव पर
इस तरह आते हैं अंजाम-ए-मोहब्बत के ख़याल
ख़ाक से सैंकड़ों उगे ख़ुर्शीद