मुफ़्लिसी और इस में घर पर हम-नशीनों का हुजूम
तीरगी में यास की धुँदला गया हुस्न-ए-उमीद
इस तरह है दिल पे इक अफ़्सुर्दगी छाई हुई
जिस तरह परदेस में बे-कार मज़दूरों की ईद
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Parveen Shakir
Wasi Shah
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(970) Peoples Rate This
किस किस की ज़बाँ रोकने जाऊँ तिरी ख़ातिर
दिल की शगुफ़्तगी के साथ राहत-ए-मय-कदा गई
लोग यूँ देख के हँस देते हैं
मौसम से रंग-ओ-बू हैं ख़फ़ा देखते चलो
रहे जो ज़िंदगी में ज़िंदगी का आसरा हो कर
वफ़ा का अहद था दिल को सँभालने के लिए
इस तरह आते हैं अंजाम-ए-मोहब्बत के ख़याल
गदा हूँ मुझ को लेकिन दौलत-ए-कौनैन हासिल है
ये उड़ी उड़ी सी रंगत ये खुले खुले से गेसू
जीने के लिए जो मर रहे हैं
कुछ अपने साज़-ए-नफ़स की न क़द्र की तू ने
आया नहीं है राह पे चर्ख़-ए-कुहन अभी