मेंह बरस कर थम गया है फट गए अब्र-ए-सियाह
टहनियाँ हिल कर हवा से गिर रही हैं बूंदियाँ
जिस तरह याद-ए-वतन में डूबते सूरज के वक़्त
क़ैद-ख़ाने में नए क़ैदी के अश्कों का समाँ
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रंग-ए-तहज़ीब-ओ-तमद्दुन के शनासा हम भी हैं
'एहसान' ऐसा तल्ख़ जवाब-ए-वफ़ा मिला
कुछ लोग जो सवार हैं काग़ज़ की नाव पर
आया नहीं है राह पे चर्ख़-ए-कुहन अभी
बला से कुछ हो हम 'एहसान' अपनी ख़ू न छोड़ेंगे
फ़ुसून-ए-शेर से हम उस मह-ए-गुरेज़ाँ को
वफ़ाएँ कर के जफ़ाओं का ग़म उठाए जा
जब किसी की याद आ कर तिलमिला जाता है दिल
शोरिश-ए-इश्क़ में है हुस्न बराबर का शरीक
हंगामा-ए-ख़ुदी से तू बे-नियाज़ हो जा
सुनता हूँ सुरंगों थे फ़रिश्ते मिरे हुज़ूर
पढ़ रही हैं रात की ख़ामोशियाँ अफ़्सून-ए-ख़्वाब