जब किसी की याद आ कर तिलमिला जाता है दिल
जगमगा उठती है कुछ इस शान से बज़्म-ए-दिमाग़
जैसे सावन की बरसती रात में इक नाज़नीं
सेहन में ज़ीने से उतरे हाथ में ले कर चराग़
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जो ले के उन की तमन्ना के ख़्वाब निकलेगा
सता लो मुझे ज़िंदगी में सता लो
हंगामा-ए-ख़ुदी से तू बे-नियाज़ हो जा
इस तरह आते हैं अंजाम-ए-मोहब्बत के ख़याल
दमक रहा है जो नस नस की तिश्नगी से बदन
रेल ने सीटी बजाई 'शोर' ओ 'दामन' चल दिए
मरने वाले फ़ना भी पर्दा है
गर्मियाँ हब्स रात तारीकी
दिल की शगुफ़्तगी के साथ राहत-ए-मय-कदा गई
आया नहीं है राह पे चर्ख़-ए-कुहन अभी
ये उजालों के जज़ीरे ये सराबों के दयार
दिल की रग़बत है जब आप ही की तरफ़