इस तरह आते हैं अंजाम-ए-मोहब्बत के ख़याल
इशरतों में दिल की पैग़ाम-ए-अलम देते हुए
जैसे खेतों के किनारों पर उतरती धूप में
सर-निगूँ शाख़ों के साए करवटें लेते हुए
Gulzar
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Anwar Masood
Habib Jalib
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(858) Peoples Rate This
यूँ उस पे मिरी अर्ज़-ए-तमन्ना का असर था
पढ़ रही हैं रात की ख़ामोशियाँ अफ़्सून-ए-ख़्वाब
जीने के लिए जो मर रहे हैं
दमक रहा है जो नस नस की तिश्नगी से बदन
वफ़ा का अहद था दिल को सँभालने के लिए
मिरे मिटाने की तदबीर थी हिजाब न था
ये उजालों के जज़ीरे ये सराबों के दयार
परस्तिश-ए-ग़म का शुक्रिया क्या तुझे आगही नहीं
हौज़ में गिर पड़ा गुलाब का फूल
दोपहर मैदान गर्मी हब्स अब्र-ए-बे-मता
सता लो मुझे ज़िंदगी में सता लो
मक़्सद-ए-ज़ीस्त ग़म-ए-इश्क़ है सहरा हो कि शहर