आसमाँ पर हैं ख़िरामाँ अब्र-पारों के हुजूम
इस तरह खुल खुल के छुपती है जबीन-ए-आफ़्ताब
जिस तरह हमसायों की आमद से हंगाम-ए-सहर
घर में शर्मीली नई दुल्हन का अंदाज़-ए-नक़ाब
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वफ़ाएँ कर के जफ़ाओं का ग़म उठाए जा
मौसम से रंग-ओ-बू हैं ख़फ़ा देखते चलो
यूँ उस पे मिरी अर्ज़-ए-तमन्ना का असर था
'एहसान' अपना कोई बुरे वक़्त का नहीं
दिल की शगुफ़्तगी के साथ राहत-ए-मय-कदा गई
तौबा की नाज़िशों पे सितम ढा के पी गया
बैठे बैठे उन की महफ़िल याद आ जाती है जब
वफ़ा का अहद था दिल को सँभालने के लिए
इस तरह आते हैं अंजाम-ए-मोहब्बत के ख़याल
हौज़ में गिर पड़ा गुलाब का फूल
लोग यूँ देख के हँस देते हैं
मुफ़्लिसी के वक़्त अक्सर इशरत-ए-रफ़्ता की याद