ये उजालों के जज़ीरे ये सराबों के दयार
सेहर-ओ-अफ़्सूँ के सिवा जश्न-ए-तरब कुछ भी नहीं
Allama Iqbal
Wasi Shah
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Gulzar
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1425) Peoples Rate This
ब-जुज़ उस के 'एहसान' को क्या समझिए
मौसम से रंग-ओ-बू हैं ख़फ़ा देखते चलो
परस्तिश-ए-ग़म का शुक्रिया क्या तुझे आगही नहीं
चूम कर उस बुत की पेशानी को पछताना पड़ा
ख़ाक से सैंकड़ों उगे ख़ुर्शीद
मैं हैराँ हूँ कि क्यूँ उस से हुई थी दोस्ती अपनी
हुस्न को दुनिया की आँखों से न देख
आज भड़की रग-ए-वहशत तिरे दीवानों की
मक़्सद-ए-ज़ीस्त ग़म-ए-इश्क़ है सहरा हो कि शहर
कुछ अपने साज़-ए-नफ़स की न क़द्र की तू ने
न जाने मोहब्बत का अंजाम क्या है