रहता नहीं इंसान तो मिट जाता है ग़म भी
सो जाएँगे इक रोज़ ज़मीं ओढ़ के हम भी
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हुस्न को दुनिया की आँखों से न देख
ब-जुज़ उस के 'एहसान' को क्या समझिए
हौज़ में गिर पड़ा गुलाब का फूल
कभी कभी जो वो ग़ुर्बत-कदे में आए हैं
रो रहा था गोद में अम्माँ की इक तिफ़्ल-ए-हसीं
बना देंगी दुनिया को इक दिन शराबी
यास में बेदारी-ए-एहसास का आलम न पूछ
जो ले के उन की तमन्ना के ख़्वाब निकलेगा
ज़ब्त भी सब्र भी इम्कान में सब कुछ है मगर
दोपहर मैदान गर्मी हब्स अब्र-ए-बे-मता
हाँ आप को देखा था मोहब्बत से हमीं ने
अब कहो कारवाँ किधर को चले