मरने वाले फ़ना भी पर्दा है
उठ सके गर तो ये हिजाब उठा
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Anwar Masood
Javed Akhtar
Gulzar
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Wasi Shah
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(837) Peoples Rate This
कल रात कुछ अजीब समाँ ग़म-कदे में था
मुफ़्लिसी के वक़्त अक्सर इशरत-ए-रफ़्ता की याद
शोरिश-ए-इश्क़ में है हुस्न बराबर का शरीक
नज़र फ़रेब-ए-क़ज़ा खा गई तो क्या होगा
मेंह बरस कर थम गया है फट गए अब्र-ए-सियाह
कुछ लोग जो सवार हैं काग़ज़ की नाव पर
हुस्न को दुनिया की आँखों से न देख
जब किसी की याद आ कर तिलमिला जाता है दिल
ज़ब्त भी सब्र भी इम्कान में सब कुछ है मगर
तुम सादा-मिज़ाजी से मिटे फिरते हो जिस पर
दोपहर मैदान गर्मी हब्स अब्र-ए-बे-मता
इश्क़ की दुनिया में इक हंगामा बरपा कर दिया