मैं जिस रफ़्तार से तूफ़ाँ की जानिब बढ़ता जाता हूँ
उसी रफ़्तार से नज़दीक साहिल होता जाता है
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हवा के सय्याल बाज़ुओं पर घटा के शब-रंग कारवाँ हैं
इस तरह आते हैं अंजाम-ए-मोहब्बत के ख़याल
गर्मियाँ हब्स रात तारीकी
दमक रहा है जो नस नस की तिश्नगी से बदन
भूरे भूरे बादलों से आसमाँ लबरेज़ है
ब-जुज़ उस के 'एहसान' को क्या समझिए
हम हक़ीक़त हैं तो तस्लीम न करने का सबब
ये कौन हँस के सेहन-ए-चमन से गुज़र गया
बैठे बैठे उन की महफ़िल याद आ जाती है जब
रात है बरसात है मस्जिद में रौशन है चराग़
बना देंगी दुनिया को इक दिन शराबी