हम चटानें हैं कोई रेत के साहिल तो नहीं
शौक़ से शहर-पनाहों में लगा दो हम को
Allama Iqbal
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Jaun Eliya
Gulzar
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1623) Peoples Rate This
हम-नशीं उफ़ इख़्तिताम-ए-बज़्म-ए-मय-नोशी न पूछ
मक़्सद-ए-ज़ीस्त ग़म-ए-इश्क़ है सहरा हो कि शहर
कभी कभी जो वो ग़ुर्बत-कदे में आए हैं
यास में बेदारी-ए-एहसास का आलम न पूछ
न जाने मोहब्बत का अंजाम क्या है
मरने वाले फ़ना भी पर्दा है
ख़ाक से सैंकड़ों उगे ख़ुर्शीद
यूँ न मिल मुझ से ख़फ़ा हो जैसे
अब कहो कारवाँ किधर को चले
रेल ने सीटी बजाई 'शोर' ओ 'दामन' चल दिए
गर्मियाँ हब्स रात तारीकी