आज उस ने हँस के यूँ पूछा मिज़ाज
उम्र भर के रंज-ओ-ग़म याद आ गए
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मिरे मिटाने की तदबीर थी हिजाब न था
परस्तिश-ए-ग़म का शुक्रिया क्या तुझे आगही नहीं
सता लो मुझे ज़िंदगी में सता लो
जब कोई जुगनू चमकता है अँधेरी रात में
दिल की शगुफ़्तगी के साथ राहत-ए-मय-कदा गई
वफ़ा का अहद था दिल को सँभालने के लिए
किस किस की ज़बाँ रोकने जाऊँ तिरी ख़ातिर
दमक रहा है जो नस नस की तिश्नगी से बदन
अब कहो कारवाँ किधर को चले
हंगामा-ए-ख़ुदी से तू बे-नियाज़ हो जा
ये कौन हँस के सेहन-ए-चमन से गुज़र गया
ये उड़ी उड़ी सी रंगत ये खुले खुले से गेसू