आया नहीं है राह पे चर्ख़-ए-कुहन अभी
आया नहीं है राह पे चर्ख़-ए-कुहन अभी
ख़तरे में देखता हूँ चमन का चमन अभी
उट्ठेंगे अपनी बज़्म से मंसूर सैकड़ों
काम अहल-ए-हक़ के आएँगे दार-ओ-रसन अभी
रंज-ओ-मेहन निगाह जो फेरें तो फेर लें
लेकिन मुझे अज़ीज़ हैं रंज-ओ-मेहन अभी
बढ़ने दो और शौक़-ए-शहादत अवाम में
कुछ बाँझ तो नहीं है ये ख़ाक-ए-वतन अभी
आँखों की सुर्ख़ियाँ हैं अज़ाएम का इश्तिहार
सीने सुलग रहे हैं लगी है लगन अभी
ये कारवाँ शनावर-ए-तूफ़ाँ तो है मगर
चेहरों पे बोलती है सफ़र की थकन अभी
हैं सामने हमारे रिवायात-ए-कार-ज़ार
बाँधे हुए हैं सर से मुजाहिद कफ़न अभी
बन बन के जाने कितने फ़ना होंगे सोमनात
बस्ते हैं हर गली में यहाँ बुत-शिकन अभी
ऐ शहरयार हम से शिकस्ता-दिलों में आ
तेरी तरफ़ से ख़ल्क़ को है हुस्न-ए-ज़न अभी
रक़्साँ अभी हैं शाम-ए-ग़रीबाँ की झलकियाँ
रौशन नहीं है ख़ंदा-ए-सुब्ह-ए-वतन अभी
जीते रहें उमीद पे रिंदान-ए-तिश्ना-काम
चलता नहीं है दौर-ए-शराब-ए-कुहन अभी
जिन के लहू से क़स्र-ए-वफ़ा में जले चराग़
इन ग़म-ज़दों में आम हैं रंज-ओ-मेहन अभी
गुलशन से फूल चल के मज़ारों तक आ गए
लेकिन है बाग़बाँ की जबीं पर शिकन अभी
है इल्म की निगाह से पिन्हाँ रह-ए-अमल
कहते नहीं कफ़न को यहाँ पैरहन अभी
नब्ज़-ए-बहार पर हैं बगूलों की उँगलियाँ
चलने को चल रही है नसीम-ए-चमन अभी
शबनम के अश्क सूखने देती नहीं फ़ज़ा
हँसता है ख़ुद बहार-ए-चमन पर चमन अभी
हर गाम हर मक़ाम पे कोशिश के बावजूद
'दानिश' न आ सका मुझे जीने का फ़न अभी
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