पत्थर न बना दे मुझे मौसम की ये सख़्ती
मर जाएँ मिरे ख़्वाब न ताबीर के डर से
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ख़्वाब देखे थे टूट कर मैं ने
मैं शर की शरारत से तो होश्यार हूँ लेकिन
ज़ख़्म शादाब देखते हैं मुझे
ये दिल अजीब है अक्सर कमाल करता है
मंज़र है अभी दूर ज़रा हद्द-ए-नज़र से
ता-अबद हासिल-ए-अज़ल हूँ मैं