ज़ख़्म शादाब देखते हैं मुझे

ज़ख़्म शादाब देखते हैं मुझे

दर्द बेताब देखते हैं मुझे

ख़्वाब देखे थे टूट कर मैं ने

टूट कर ख़्वाब देखते हैं मुझे

दाग़-ए-दिल ज़ौ-फ़िशाँ हुए यूँ कि

शम्स ओ महताब देखते हैं मुझे

खुल गया हो न दोस्ती का भरम

डर के अहबाब देखते हैं मुझे

इक तनाव सा अपने-आप से है

खिंच के आसाब देखते हैं मुझे

मुझ में शाएर तो और है 'पिंहाँ'

और अर्बाब देखते हैं मुझे

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