ता-अबद हासिल-ए-अज़ल हूँ मैं
या फ़क़त लुक़्मा-ए-अजल हूँ मैं
ख़ुद को भी ख़ुद से मावरा चाहूँ
अपनी हस्ती में कुछ ख़लल हूँ मैं
मेरा हर मसअला उसी का है
उस के हर मसअले का हल हूँ मैं
उस की आँखों का आईना-ख़ाना
झील में जैसे इक कँवल हूँ मैं
गुनगुनाती रही जिसे 'पिंहाँ'
मुझ को लगता है वो ग़ज़ल हूँ मैं