उम्मीद पर हमारी ये दुनिया खरी नहीं
उम्मीद पर हमारी ये दुनिया खरी नहीं
फिर भी तो उस को पाने की ख़्वाहिश मिरी नहीं
बे-वज्ह गुल-रुख़ों से मिरी बे-रुख़ी कहाँ
मेरे जुनून-ए-शौक़ के क़ाबिल परी नहीं
तस्कीं मिले भी दीदा-ए-हैराँ को किस तरह
शीशागरी नहीं कहीं जल्वागरी नहीं
बद-रंग सी बहार है फ़स्ल-ए-बहार में
बश्शाश दिल नहीं है तबीअ'त हरी नहीं
लगता है आज शहर के हालात ठीक हैं
मस्जिद वगरना कल की तरह क्यूँ भरी नहीं
हालाँकि मेरे जुर्म पे पर्दे पड़े रहे
दिल की मलामतों से मगर मैं बरी नहीं
धरती पे दिख रहे हैं गुनाहों के अब असर
'आज़म' कहीं तो ख़ुश्की कहीं पर तरी नहीं
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