वक़्त बर्बाद करने वालों को
वक़्त बर्बाद कर के छोड़ेगा
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अबस इल्ज़ाम मत दो मुश्किलात-ए-राह को 'राही'
अगर मौजें डुबो देतीं तो कुछ तस्कीन हो जाती
अब तो उतनी भी मयस्सर नहीं मय-ख़ाने में
ग़ुस्से में बरहमी में ग़ज़ब में इताब में
इस इंतिज़ार में बैठे हैं उन की महफ़िल में
इस शहर-ए-निगाराँ की कुछ बात निराली है
इस से पहले कि लोग पहचानें
ऐन-फ़ितरत है कि जिस शाख़ पे फल आएँगे
सोचने की ये बात है 'राही'
बात हक़ है तो फिर क़ुबूल करो
बहुत आसान है दो घूँट पी लेना तो ऐ 'राही'
वक़ार-ए-ख़ून-ए-शहीदान-ए-कर्बला की क़सम