इस से पहले कि लोग पहचानें
ख़ुद को पहचान लो तो बेहतर है
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Allama Iqbal
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Habib Jalib
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Faiz Ahmad Faiz
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वक़्त बर्बाद करने वालों को
वक़्त को बस गुज़ार लेना ही
इस शहर-ए-निगाराँ की कुछ बात निराली है
अगर मौजें डुबो देतीं तो कुछ तस्कीन हो जाती
ऐन-फ़ितरत है कि जिस शाख़ पे फल आएँगे
इस दौर-ए-तरक़्क़ी के अंदाज़ निराले हैं
सवाल ये है कि इस पुर-फ़रेब दुनिया में
अबस इल्ज़ाम मत दो मुश्किलात-ए-राह को 'राही'
हज़ारों बार कह कर बेवफ़ा को बा-वफ़ा मैं ने
ज़रा भी शोर मौजों का नहीं है
बात हक़ है तो फिर क़ुबूल करो
कुछ आदमी समाज पे बोझल हैं आज भी