ग़ुस्से में बरहमी में ग़ज़ब में इताब में
ख़ुद आ गए हैं वो मिरे ख़त के जवाब में
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इस दौर-ए-तरक़्क़ी के अंदाज़ निराले हैं
इस से पहले कि लोग पहचानें
वक़ार-ए-ख़ून-ए-शहीदान-ए-कर्बला की क़सम
बात हक़ है तो फिर क़ुबूल करो
सोचने की ये बात है 'राही'
इस शहर-ए-निगाराँ की कुछ बात निराली है
अगर ऐ नाख़ुदा तूफ़ान से लड़ने का दम-ख़म है
इस इंतिज़ार में बैठे हैं उन की महफ़िल में
वक़्त बर्बाद करने वालों को
अबस इल्ज़ाम मत दो मुश्किलात-ए-राह को 'राही'
सवाल ये है कि इस पुर-फ़रेब दुनिया में