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ज़माने ठीक है इन से बहुत हुए रौशन - दिनेश नायडू कविता - Darsaal

ज़माने ठीक है इन से बहुत हुए रौशन

ज़माने ठीक है इन से बहुत हुए रौशन

मगर चराग़ कहाँ ख़ुद को कर सके रौशन

सभी के ज़ेहन में उस का ख़याल रहता है

उस एक नूर से है कितने आइने रौशन

अभी तो हम को कई रोज़ जगमगाना है

हमीं है दश्त में इक आख़िरी दिए रौशन

महक उसी की मिरी रहनुमाई करती है

उसी की चाप से होते हैं रास्ते रौशन

हम एक उम्र से तारीकियों में सिमटे थे

जब उस ने छू लिया तो हम भी हो गए रौशन

किसी का अक्स मुझे ख़्वाब में दिखा था कभी

तमाम उम्र रहे मेरे रत-जगे रौशन

ये आधी रात को दस्तक सी किस ने दी दिल पर

ये किस ने कर दिए हर सम्त क़ुमक़ुमे रौशन

हम एक रुख़ से अँधेरे में आ गए लेकिन

कई रुख़ों से हमारे हैं सिलसिले रौशन

चलो 'दिनेश' अब इस दिल से उन का नूर गया

तलाशते हैं इलाक़े बचे-खुचे रौशन

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