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मिरे कमरे में पूरी चाँदनी है - दिनेश नायडू कविता - Darsaal

मिरे कमरे में पूरी चाँदनी है

मिरे कमरे में पूरी चाँदनी है

फ़क़त तेरी कमी बाक़ी रही है

मैं सहरा में तसल्ली से रहूँगा

मुसलसल तिश्नगी ही तिश्नगी है

ख़मोशी ओढ़ कर बैठे हैं सब पेड़

ये बारिश आज कितनी ख़ुश्क सी है

हवा आई है किस दुनिया से हो कर

हर इक टहनी शजर की काँपती है

अभी तो सर्दियों का दौर होगा

फ़ज़ा रोना था जितना रो चुकी है

मैं हर दीपक बुझाता जा रहा हूँ

मेरी दुनिया में इतनी रौशनी है

दरीचा अब नहीं खुलता तुम्हारा

नज़र लेकिन किसी की मानती है

वो जो हस्सास लड़का मर गया था

अब उस का शौक़ केवल शाइरी है

कभी ठहरा नहीं फूलों का मौसम

दिलों का टूट जाना क़ुदरती है

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