चाक पर मिट्टी को मर जाना है
चाक पर मिट्टी को मर जाना है
ख़्वाब-ए-ता'मीर बिखर जाना है
हम को उस दश्त में जाना होगा
वहशतों का यही हर्जाना है
साहिबो हम हैं उसी सफ़ के लोग
जिन से सहरा को सँवर जाना है
सामने हश्र की हद है साहब
अब हमें लौट के घर जाना है
क़ब्र-गाह हैं सदाओं की यहाँ
बस यहीं हम को भी मर जाना है
तुम को खोने का तुम्हें पाने का
हम ने हर क़िस्म का डर जाना है
कोई भी राह नहीं है उस तक
हम को मालूम है पर जाना है
लो नज़र आने लगा उस का हश्र
क़ाफ़िले वालो ठहर जाना है
किस लिए तैरना अश्कों में सदा
अब तह-ए-दीदा-ए-तर जाना है
वो 'दिनेश' उस की गली है आगे
देख लो तुम को किधर जाना है
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