हुस्न पर ए'तिबार हद कर दी

हुस्न पर ए'तिबार हद कर दी

आप ने भी 'फ़िगार' हद कर दी

आदमी शाहकार-ए-फ़ितरत है

मेरे पर्वरदिगार हद कर दी

शाम-ए-ग़म सुब्ह-ए-हश्र तक पहुँची

ऐ शब-ए-इंतिज़ार हद कर दी

एक शादी तो ठीक है लेकिन

एक दो तीन चार हद कर दी

ज़ौजा और रिक्शा में अरे तौबा

दाश्ता और ब-कार हद कर दी

छे महीने के बा'द निकला है

आप का हफ़्ता-वार हद कर दी

घर से भागे तो कोई बात नहीं

ज़िंदगी से फ़रार हद कर दी

एक मिसरे में मसनवी लिख दी

इस क़दर इख़्तिसार हद कर दी

क्या मुरस्सा ग़ज़ल कही है 'फ़िगार'

आज तो तू ने यार हद कर दी

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