उस से मिलना तो उसे ईद-मुबारक कहना
ये भी कहना कि मिरी ईद मुबारक कर दे
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वही सितारा-नुमा इक चराग़ है 'आज़र'
सात दरियाओं का पानी है मिरे कूज़े में
मंज़र से उधर ख़्वाब की पस्पाई से आगे
खींच कर अक्स फ़साने से अलग हो जाओ
मख़्फ़ी हैं अभी दिरहम-ओ-दीनार हमारे
बोझ उठाए हुए दिन रात कहाँ तक जाता
यूँ दीदा-ए-ख़ूँ-बार के मंज़र से उठा मैं
एक लम्हे के लिए तन्हा नहीं होने दिया
इक दिन जो यूँही पर्दा-ए-अफ़्लाक उठाया
हवा ने इस्म कुछ ऐसा पढ़ा था
बना रहा था कोई आब ओ ख़ाक से कुछ और
ख़ुद में खिलते हुए मंज़र से नुमूदार हुआ